Afghanistan, History | अफगानिस्तान की पूरा इतिहास की जानकरी।

अफगानिस्तान (Afghanistan) बांग्लादेश और मेनमर (बर्मा) देश की तरह पहले भारत का एक समलित राज्ये हुआ करता था। लगभग 3,500 साल पूरब यह पर एकेश्वरवादी धर्म की स्थापना करने वाले दार्शनिक पारसी जोरास्टर यही रहते थे। 

तैरवी  शताब्दी के परिखायात महान कवि रूमी  का जन्म भी अफगानिस्तान मे ही हुआ था । पर्व कल मे धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी और  प्रसिद्ध  संस्कृत व्याकरणाचार्य पाणिनी यही पर रहते थे ।

Afghanistan की मूल जाती पख्तून है जिसे पठान (पख्तून) के नाम  से जानते है । पठान को पहले पक्ता भी कहा जाता था । ऋग्वेद मे चौथे खंड 44 वें श्लोक मे भी पख्तून जाती का व्रणणं पक्त्याकय नाम से मिलता है । 

और तीसरे खंड मे 91 वें श्लोक अफरीदी कबले का जिक्र आपर्यतय के नाम से करता है । सुदास-संवरण के बीच हुए दाशराज्ञ युद्घ में पख्तूनों का उल्लेख ‘पुरू’ (ययाति के कुल से) कबीले के सहयोगियों के रूप में जिक्र है।

अफगनिस्तान (afghanistan) में इस्थित नदियाँ।

Afghanistan की नदियों अफगानिस्तान मे काईसारे नदियों एव उपनदियों बहती है जिस नदियों को हम वर्तमान मे आमू, काबुल, कुर्रम, रंगा, गोमल, हरिरुद, और भी काई नामों से जानते हैं। इसी नदियों को पूर्व कल मे प्राचीन भारत मे लोग इसे – वक्षु, कुभा, कुरम, रसा, गोमती, हर्यू या सर्यू के नाम से जानते थे। यहाँ पर कई सरे छोटे नदियाँ , झरने आदि भी पाये जाते है। 

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Afghanistan और भारत का इतिहास। 

अफगानिस्तान का इतिहास भारत से जुरा हुआ है – पूर्व काल मे महाभारत के समय गांधारी के देश के अनेक संदर्भ मिलते है। उस समय मे हस्तिनापुर के राजा संवरण पर जब सुदास दुआर आक्रमण किया गया था तब संवरण की सहायता के लिए जो पस्थ लोग पश्चिम से आए थे वे पठान ही थे।

प्राचीन कल संस्कृत साहित्य मे कंबोज नामक एक देश मिलता है । कंबोज देश का विस्तार पूर्व कल मे कश्मीर से लेकर हिंदुकुश तक फ़ौला हुआ राज्य था । वंश-ब्राह्मण में कंबोज औपमन्यव नामक एक आचार्य का उल्लेख मिलते है।

वैदिक प्राचीन कल मे कंबोज आर्य-संस्कृति का केंद्र था जिस प्रकार की वंश-ब्राह्मण के उल्लेख से मिला है, लेकिन पूर्व कालांतर काल मे आर्यसभ्यता पूर्व की और बढ़ता गया तब उसे आर्य-संस्कृति से बाहर समझा जाने लगा था ।

पूर्ण काल मे अफगनिस्तान मे पहले आर्ये समाज के कबीले थे कबीले का नाम आबाद था और वह सब वैदिक धर्म का पालन करता था, फिर आगे इनोने बौद्ध  के प्रचार किए, उसके बाद यह स्थान बौद्ध का एक  गढ़ बन गया।

फिर यहाँ के सभी लोग ध्यान एव रहस्य की खोज मे पूरी तरह लग गए । एक चीनी यात्री युवानच्वांग ने इस्लाम और अफगानिस्तान के बौद्धकाल का इतिहास लिखा है।

गौतम बुद्ध अफगानिस्तान मे करीब 6 (छः)माह तक रहे थे। बौद्धकाल मे अफगानिस्तान का राजधानी बामियान हुआ करता  था ।

प्राचीन काल मे हमलावर सिकंदर का आक्रमण सन 328 ईसा पूर्व के समय हुआ था, जब वहाँ प्रायः फारस के हखामनी शाहों का पूर्ण शासन था।

आर्यकाल मे ये क्षेत्र अखंड भारत का हिस्सा था, जब ईरान के पार्थियाँ पार्थियन एव भारतीय शकों के बीच बटने के बाद अफगानिस्तान के आज के भू-भाग पर सासानी शासन आये थे ।

अफगानिस्तान (afghanistan) मे अनेक प्राचीन काल के अंश मिलते है जिसमे बामियान, जलालाबाद, काबुल, बगराम, बल्ख आदि स्थानों पे अनेक मूर्तियों, स्तूपों, संघारामों, विश्वविद्यालयों तथा मंदिरों के अवशेष मिलते है।

काबुल मे आसामाई मंदिर करीब 2000 साल पुराना बताया जाता है। ‘आसामाई’ पहाड़ पर खड़ी एक पत्थर की दीवार को ‘हिन्दूशाहों’ द्वारा निर्मित परकोटे के रूप में देखा जाता है। काबुल मे एक संग्रहालय है जो बौद्घ अवशेषों के खजाना रहा है।

प्राचीन अतीत का अफ़गान की इसी धरोहर को पहले इस्लामिक मुजाहिदीन और अब तालिबान ने लगभग नष्ट कर दिया है। बमियान मे सबसे ऊंची और विश्वप्रसिद्घ बुद्घ प्रतिमाओं को भी उन्होंने लगभग नष्ट कर दिया, हलाकी कुछ अवशेष अभी बचे है ।

जबसे यहाँ पर इस्लाम का आगमन हुआ, इसके बाद यहाँ एक न्यू  क्रांति की शुरुआत हो गया, भगवान बुद्ध के शांति के मार्ग को छोड़कर ये लोग क्रांति के मार्ग पर चल पड़े है ।

शीतयुद्ध के समय अफगानिस्तान को ‘तहस-नहस’ कर दिए गए, यहाँ की संस्कृति एव प्राचीन धर्म को चिन्ह मिटा दिए गए।

पूर्व मे सन 843 ईस्वी मे कल्लार या कल्लर नामक एक राजा ने हिन्दू शाही वंश का आस्थापन किया था, इस विषय मे कल्हण की राजतरंगिनी मे जनकरी मिलता है ।

तत्कालीन सिक्कों से पता चलता है की कल्लार के पहले ‘रुतविल या रणथाल’ स्पालपति और लगतुरमान नामक हिन्दू या बुद्ध राजाओ का गांधार प्रदेश मे राज्य हुआ करता था, यह स्वयं की कनिष्क का वंशज भी मानते थे।

उस समय भारतीय राजाओ को कबूलशाह या फिर महाराज धर्मपति कहाँ जाता  था, इन राजाओ मे कल्लार, अमंतदेव, भीम, अष्टपाल, जयपाल, आनंदपल, त्रिलोचनपाल, भीमपाल और भी अन्ये उल्लेखनीए है।

इस राजाओ ने लगभग 350 साल तक अरब आततायियों और लुटेरों को जबर्दस्त टक्कर दी और उन्हों सिंधु पड़ी पर करके भारत में घुसने नहीं दिया, परंतु 1019 में महमूद गजनी से त्रिलोचनपाल की हार के साथ अफगानिस्तान का इतिहास बिल्कुल पलट गया।

ये आश्चर्य की बात है की इन्हे हार्ट हुए हिन्दूशाही राजाओ के बारे में अरबी और फारसी इतिहासकारों ने तारीफ करते हुए लिखा है। अल-बेरूनी और अल-उतबी ने लिखा है, की हिन्दूशाहियों के राज्य मे मुसलमान, यहूदी और बौद्ध लोग मिलजुलकर रहते थे।

उसमें कोई भेदभाव नहीं किया जाता था, इस राजाओ ने सोने के सिक्के तक चलाए। हिंदुशाहों के सिक्के तक इतने अच्छे होते थे की उस समय सन 908 में बगदाद के अब्बासी खलीफा ‘अल-मुक्तदीर’ ने वैसे ही देवनागरी सिक्कों पर अपना नाम अरबी मे लिखकर उसे नए सिक्के मे जारी करवा दिया था।

बीते दशकों में मुस्लिम इतिहासकारों मे से एक फरिश्ता के अनुसार हिन्दूशाही की लूट का माल जब गजनी मे प्रदर्शित किया गया तो तब पड़ोसी मुल्कों के राजदूतों की आँखों खुली की खुली रह गया।

उस समय भीमनगर (नगरकोट) से लूटे गए माल को गजनी तक लाने के लिए ऊंटों की भी कमी पर गया, महमूद गजनी को सत्ता एव लुटपाट के अलावा धर्म को नाश करने का नशा था इसलिए जब वह किसी भी क्षेत्रों को जीतते थे, वह जीते हुए क्षेत्रों के मंदिरों, शिक्षा केंद्रों, बाजारों और भवनों को नष्ट करता हुआ जाता था ।

फिर वह उस क्षेत्रवासियों और अस्थनीय लोगों को जबरदस्ती मुसलमान बनाते जाता था, आज भी वे सभी अफगानी हिन्दू अब मुसलमान है । इस बात को अल-बेरूनी, अल-उतबी, अल-मसूदी एव अल-मकदीसी जैसे मुस्लिम इतिहासकारों ने अपनी लेख मे लिखी हुई है।

उस समय अफगानिस्तान (afghanistan) नाम का ‘विशेष-प्रचलन’ नहीं था, और  17वीं सदी तक तो अफगानिस्तान नाम का कोई राष्ट्र भी नहीं हुआ करता था। फिर अफगानिस्तान नाम का विशेष-प्रचलन अहमद शाह दुर्रानी के शासन-काल (1747-1773) बीच में हुआ था।

इससे पहले पूर्व काल में अफगानिस्तान (afghanistan) को आर्यान, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह एव रोह आदि नामों से ही पुकारा जाता था, जिसमे गांधार, कम्बोज, कुंभा, वर्णु, सुवास्तु और अन्या आदि क्षेत्र समीलित था।

पूर्व काल में 6 वी सदी तक यह एक हिन्दू एव बौद्ध बहुल क्षेत्र हुआ करता था, यहाँ पर बिभिन्न राजाओ राज करते थे और इसका अपना एक अलग-अलग राज्य भी हुआ करता था। उस समय उनकी जाती कुछ भी रहा हो,लेकिन वह सभी आर्य कहलाते थे उस समय और वे सभी आर्यवंशीय राजा थे।

विते वर्षों मे सन 1919 मे 18 अगस्त को अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से आजादी मिला, लेकिन ऐसा नहीं है की इससे पहले आजाद नहीं था,इससे कुछ पहले ही अफगानिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बन चुका था।

जब 26 मई 1739 को दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह अकबर ने ईरान के नादिर शाह से संधि कर के अफगानिस्तान (afghanistan) उसे सौंप दिया गया था। 

afghanistan की संक्षिप्त में इतिहास 

  1. प्राचीन काल मे गांधार और कंबोज के कुछ हिस्सों को मिलकर अगनिस्तान बना था । उस समय संपूर्ण क्षेत्र मे हिन्दूशाही और पारसी राजवंशों का शासन हुआ करता था । बाद मे यहाँ बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ और यहाँ के राजा बौद्ध हो गए थे।
  2. सिकंदर के आक्रमण के बाद उस समय यहाँ पर फारसी और यूनानियों का शासन हो गया था । फिर यहाँ 7 वी सदी के बाद यहाँ पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरू कर दिया और फिर 870 ई० मे अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार मे कर लिया था।
  3. हालांकि इसके खिलाफ लड़ाई चलती रही, और बाद मे यह दिल्ली के मुस्लिम शासकों के कब्जे में रहा और  फिर ब्रिटिश इंडिया के अंतर्गत आ गया था ।
  4. फिर सन 1834 में एक प्रकिया के तहत 26 मई 1876 को रूसी और ब्रिटिश शासकों के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय भारत मे लिया  था, और फिर अफगानिस्तान (afghanistan) नाम से एक बफर (बड़े) स्टेट बनाए गए मतलव राजनीतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया था। और इससे अफगानिस्तान अर्थात पठान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से अलग हो गए।
  5. फिर 18 अगस्त 1919 को अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली गया। पहले सन 1919 से 1978 तक, अफगान के अपने लोगों का शासन था।
  6. फिर एक बार 1978 से 1989 तक सोवियत यूनियन की सेना का शासन रहा था। इसके बाद फिर सन 1989 से 1996 तक अफगानिस्तान मे तालिबान और अफगान सरकार की लड़ाई के दौर रहा था।  इस लड़ाई  मे अफ़गान सरकार को सिकस्थ मिली और सन 1996 से 2001 तक तालिबान का कुरुर  शासन रहा था।
  7. फिर बाद जब 11 सितंबर 2001 को दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ था, तब 2001 से 2021 तक अतकियों का खत्म करने के लिए अमेरिकी सेना यहाँ आए 20 वर्ष शासन किया, फिर 15 अगस्त 2021 मे तालिबानी एक बर फिर सत्ता में वापस आ गया है।

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